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Tuesday, November 8, 2011

Stock_for_YOU Fwd: ।।अर्थकाम।।



सेलन के पास खोजने को बहुत कुछ

Posted: 08 Nov 2011 07:14 PM PST


साल 1992 में देश में हाइड्रोकार्बन की खोज व उत्पादन का काम निजी क्षेत्र के लिए खोला गया और सेलन एक्सप्लोरेशन टेक्नोलॉजी तभी से धरती के भीतर से इन्हें निकालने का काम कर रही है। उसे शुरू में सरकार से गुजरात में खोजे गए तीन तेल क्षेत्रों – बकरोल, इंदरोरा व लोहार को विकसित करने का काम मिला। इसके बाद गुजरात में ही दो और तेल क्षेत्रों – ओग्नाज व कर्जीसन का काम भी मिल गया। कंपनी इन तेल क्षेत्रों से जो भी कच्चा तेल व प्राकृतिक गैस निकालती है, उसे पूरा का पूरा सरकार उत्पादन हिस्सेदारी अनुबंध (पीएससी) के तहत खरीद लेती है। इसलिए कंपनी को मार्केटिंग व वितरण पर कुछ खास खर्च नहीं करना पड़ता।

सेलन एक्सप्लोरेशन इस समय अपने आवंटित तेल क्षेत्रों से साल में करीब 2.50 लाख बैरल तेल का उत्पादन कर रही है। हालांकि पिछले एक साल से कंपनी का उत्पादन कमोबेश ठहरा हुआ है। लेकिन कंपनी प्रबंधन ने इधर बकरोल क्षेत्र में ऐसे नए बिंदु तलाशे हैं जहां खोदे गए तेल कुओं से अभी से दस गुना तेल निकाला जा सकता है। मतलब यह कि एक-दो तिमाहियों के बाद उत्पादन काफी बढ़ सकता है। हो सकता है कि दो तिमाहियों में यह दोगुना हो जाए। अभी उसके पास कुल 20 तेल कुएं हैं और हर तेल कुंए से साल में औसतन 10,000-15,000 बैरल तेल निकलता है। दस गुना होने का मतलब होगा कि प्रति कुआं तेल उत्पादन एक लाख से 1.5 लाख बैरल प्रति कुंआ हो जाएगा। लेकिन फिलहाल यह काफी लंबी अवधि की बात है।

बकरोल क्षेत्र में तेल का कुल अनुमानित भंडार 7.50 करोड़ बैरल का है। इसका मूल्य तकरीबन 25,000 करोड़ रुपए निकलता है, जबकि कंपनी का बाजार पूंजीकरण इस समय मात्र 500 करोड़ रुपए के आसपास है। कल, मंगलवार को इसका दस रुपए अंकित मूल्य का शेयर बीएसई (कोड – 530075) में 2.11 फीसदी बढ़कर 292.65 रुपए और एनएसई (कोड – SELAN) में 2.29 फीसदी बढ़कर 292.90 रुपए पर बंद हुआ है।

कंपनी को जिन पांच तेल क्षेत्रों का मालिकाना हक मिला हुआ है, उनमें से वह फिलहाल केवल बकरोल तेल क्षेत्र से ही तेल निकाल रही है। वो भी कुल भंडार के पांच फीसदी से भी कम। बाकी चार तेल क्षेत्र अभी तक अनछुए पड़े हैं। बीते वित्त वर्ष 2010-11 के आखिरी तिमाही में कंपनी ने लोहार ऑनशोर क्षेत्र में पहले तेल कुंए की खुदाई का काम शुरू किया है। वो चालू वित्त वर्ष में कर्जीसन क्षेत्र में सात और तेल कुंए खोदना चाहती है। कंपनी ने अपने आवंटित तेल क्षेत्रों की मैपिंग पर पिछले दो साल में करीब 80 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। लोहार व कर्जीसन से काफी सकारात्मक उम्मीद है। बहुत मुमकिन है कि लोहार में पहले तेल कुंए की कामयाबी के बाद 8-9 और तेल कुएं खोद लिए जाएं।

लक्ष्य है लोहार तेल क्षेत्र से सालाना 1.25 से 2.50 लाख बैरल कच्चे तेल का उत्पादन। इससे वित्त वर्ष 2011-12 में इंदरोरा व बकरोल तेल क्षेत्रों को मिलाकर कंपनी का कुल सालाना तेल उत्पादन बढ़कर लगभग 4 लाख टन हो सकता है। सेलन एक्सप्लोरेशन की मजबूती के कुछ और पहलू हैं: सभी तेल क्षेत्र पुख्ता है; कंपनी का ऋण/इक्विटी अनुपात मात्र 0.17 है और मार्च 2011 तक उसके ऊपर कुल 38.07 करोड़ रुपए का कर्ज था; तेल क्षेत्रों की मैपिंग या सर्वे का काम पूरा हो चुका है और वो 3-डी भूकंपीय परख भी कर चुकी है; लोहार क्षेत्र में खुदाई शुरू हो चुकी है; कंपनी इस साल दस नए तेल कुएं खोदेगी।

इस साल दो नए तेल क्षेत्रों से 15 अन्य तेल कुओं से कंपनी का उत्पादन काफी बढ़ सकता है। कंपनी का मौजुदा कैश फ्लो नए कुओं की खुदाई के खर्च को पूरा करने के लिए पर्याप्त है। इधर कंपनी ने अपने कुछ वर्तमान तेल क्षेत्रों में शेल गैस का पता भी लगाया है। चूंकि चट्टानों के बीच दबी शेल गैस को निकालने की टेक्नोलॉजी कुछ अमेरिकी कंपनियों के पास ही है। इसलिए सेलन एक्सप्लोरेशन निकट भविष्य में कोई विदेशी रणनीतिक साझीदार भी पकड़ सकती है। यह स्टॉक लंबे समय के निवेश के लिए काफी मुफीद दिख रहा है।

कंपनी ने कल ही सितंबर 2011 की तिमाही के नतीजे घोषित किए हैं। इनके मुताबिक उसका शुद्ध लाभ 8.96 करोड़ रुपए पर ठहरा हुआ है, जबकि बिक्री 8.36 फीसदी बढ़कर 19.96 करोड़ रुपए हो गई है। इन नतीजों के बाद उसका ठीक पिछले बारह महीनों (टीटीएम) का ईपीएस (प्रति शेयर मुनाफा) 21.17 रुपए हो गया है। इस आधार पर उसका शेयर अभी 13.82 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। चालू वित्त वर्ष 2011-12 के अंत तक कंपनी का तेल उत्पादन 4 लाख बैरल सालाना तक पहुंचा तो उसका ईपीएस 60-65 रुपए और अगले साल 2012-13 में तेल उत्पादन 8 लाख बैरल होने पर ईपीएस 115 रुपए तक जा सकता है। कंपनी की इक्विटी मात्र 16.99 करोड़ रुपए है। इसका 42.02 फीसदी हिस्सा प्रवर्तकों के पास है, जिसमें से 16.42 फीसदी भारतीय और 25.60 फीसदी विदेशी प्रवर्तकों के पास हैं। वैसे, कंपनी के पांचों विदेशी प्रवर्तक भारतीय मूल के ही हैं। कंपनी में एफआईआई ने सितंबर तिमाही के दौरान अपना निवेश 2.20 फीसदी से घटाकर 0.66 फीसदी कर दिया है, जबकि डीआईआई का मौजूदा निवेश 0.15 फीसदी का है। कंपनी के कुल शेयरधारकों की संख्या 17,403 है। इसमें से 15,887 यानी 91.29 फीसदी एक लाख रुपए से कम लगानेवाले छोटे निवेशक हैं।

अंत में एक सुझाव। हमने अपनी तरफ से सेलन एक्सप्लोरेशन के बारे में आपको बताया। लेकिन आप इस उद्योग की अन्य कंपनियों पर भी नजर डालने के बाद ही निवेश का फैसला करें क्योंकि ओएनजीसी का शेयर इस समय 11.22 और ऑयल इंडिया का शेयर 11.88 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है।

पीढ़ियों की होड़

Posted: 08 Nov 2011 04:45 PM PST


हम में से ज्यादातर लोग जिंदगी भर बच्चे बने रहते हैं तो अभिभावक कैसे बन पाएंगे! जब तक बड़े होते है तब तक बच्चे भी बड़े हो चुके होते हैं तो पीढ़ियों के नाम पर आपस की ही होड़ शुरू हो जाती है।

पेट्रोल मूल्य का 38.2% सरकारी जेब में

Posted: 08 Nov 2011 07:40 AM PST


इस समय पेट्रोल के मूल्य का 38.2% हिस्सा केंद्र व राज्य सरकारों के टैक्स का है। जैसे, दिल्ली में पेट्रोल का दाम 68.64 रुपए है जिसमें से 26.22 रुपए सरकारी टैक्सों के हैं। अभी अंतरराष्ट्रीय दाम के हिसाब से कंपनियों की तरफ से तय पेट्रोल का आधार मूल्य 41.38 रुपए है। इस पर 3% शिक्षा अधिभार को मिलाकर केंद्र को प्रति लीटर 14.78 रुपए की एक्साइज ड्यूटी मिलती है, जबकि दिल्ली सरकार को वैट के रूप में 11.44 रुपए मिल रहे हैं। डीजल में 41.29 रुपए के खुदरा मूल्य में से 7.66 रुपए या 18.6% टैक्स के हैं।

डॉयचे बैंक ने डराया, सेंसेक्स गिरेगा 14,500 तक

Posted: 08 Nov 2011 07:04 AM PST


पिछले कुछ दिनों से भारतीय शेयर बाजार में तेजी का क्रम जमने लगा तो मंदी के खिलाड़ियों ने अपनी पकड़ बनाने के लिए रिसर्च रिपोर्टों का सहारा लेना शुरू कर दिया है। भारत में सक्रिय जर्मन बैंक, डॉयचे बैंक ने एक ताजा रिपोर्ट जारी कर कहा है कि अगर अगले वित्त वर्ष 2012-13 में भारत के जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) या अर्थव्यवस्था की विकास दर 7 फीसदी पर आ गई तो बीएसई सेंसेक्स गिरकर 14,500 अंक पर आ सकता है।

हालांकि डॉयचे बैंक की इसी रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर ठीक रहेगी और अगले दो साल तक इसके 8 फीसदी रहने की उम्मीद है। लेकिन देश की आर्थिक विकास दर को लेकर उठाई यह चिंता निवेशकों के विश्वास को और ज्यादा तोड़ सकती है।

सेंसेक्स फिलहाल 17,500 के ऊपर चल रहा है। अगस्त 2009 के बाद से यह 15,000 अंक के नीचे नहीं आया है। साल भर पहले नवंबर 2010 में सेंसेक्स 21,000 अंक तक चला गया था। लेकिन फिर घटने लगा तो वह स्तर दोबारा नहीं हासिल कर सका।

पिछले पांच साल में भारत की औसत आर्थिक वृद्धि दर 8.4 फीसदी रही है। 2008-2009 के वैश्विक वित्तीय संकट को अगर छोड़ दिया जाए तो यह दर फीसदी निकलती है। चालू वित्त वर्ष 2011-12 के लिए रिजर्व बैंक ने आर्थिक विकास दर का अनुमान घटाकर 7.6 फीसदी कर दिया है।

उत्तर प्रदेश में गन्ने का मूल्य 40 रुपए बढ़ा

Posted: 08 Nov 2011 06:42 AM PST


उत्तर प्रदेश सरकार ने गन्ने का राज्य समर्थित मूल्य (एसएपी) 40 रूपए प्रति क्विंटल बढ़ा दिया है। मुख्यमंत्री मायावती की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की बैठक में यह फैसला किया गया। अब सामान्य किस्म के गन्ने की बढ़ी कीमत 240 रुपए, अच्छे किस्म के गन्ने के लिए 250 रुपए और अन्य किस्म के गन्ने की कीमत 235 रुपए प्रति क्विंटल हो जाएगी।

इस फैसले की घोषणा करते हुए खुद मुख्यमंत्री मायावती ने लखनऊ में बताया कि निजी चीनी मिल मालिकों को तीन दिन में पेराई शुरू करने के निर्देश दे दिए गए हैं। पेराई नहीं शुरू करने पर चीनी मिलों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने कहा कि किसानों के हित को देखते हुए गन्ने की कीमत बढ़ाने का निर्णय लिया गया है। इससे राज्य के 40 लाख गन्ना किसान लाभान्वित होंगे।

बता दें कि राज्य सरकार ने पिछले पेराई सत्र में भी गन्ने की कीमत 40 रुपए प्रति क्विंटल बढ़ाई थी। बीएसपी के सत्ता में आने के बाद गन्ने के राज्य समर्थित मूल्य में लगभग दोगुनी वृद्धि की गई है। पार्टी 2007 में जब सत्ता में आई, तब गन्ने का एसएपी 125 रुपए प्रति क्विंटल था, जिसे अब बढ़ाकर 235 से 250 रुपए प्रति क्विंटल कर दिया गया है। यह पंजाब से भी ज्यादा है, जहां गन्ने का एसएपी अभी 220 रुपए से 230 रुपए प्रति क्विंटल है। मुख्यमंत्री ने कहा कि बकाया नहीं चुकाने पर पिछले साल दो निजी चीनी मिल मालिकों को जेल भेजा गया था। अब गन्ना किसानों का पिछले पेराई  सत्र का कुछ भी बकाया नहीं है।

निर्यात की तेजी पर अचानक लगाम, दो सालों में रफ्तार रही सबसे धीमी

Posted: 08 Nov 2011 06:12 AM PST


पता नहीं कि यह निर्यात के आंकड़ों की अप्रत्याशित तेजी पर उठे संदेह का नतीजा है या यूरोपीय देशों में छाए संकट का परिणाम, लेकिन ताजा सूचना यह है कि अक्टूबर महीने में देश से हुआ निर्यात साल भर पहले से मात्र 10.8 फीसदी बढ़ा है। यह दो सालों के दौरान निर्यात में हुई सबसे कम वृद्धि दर है। इससे पहले अक्टूबर 2009 में हमारा निर्यात 6.6 फीसदी घट गया था। लेकिन उसके बाद से हर महीने बढ़ रहा था। चालू वित्त वर्ष 2011-12 में तो जुलाई में हमारा निर्यात 82 फीसदी, अगस्त में 44.25 फीसदी और सितंबर में 36.36 फीसदी बढ़ा था।

मंगलवार को वाणिज्य सचिव राहुल खुल्लर ने विदेश व्यापार के अनंतिम आंकड़ों के आधार पर संवाददाताओं को बताया कि अक्तूबर के दौरान भारत से निर्यात 10.8 फीसदी बढ़कर 19.9 अरब डॉलर हो गया, जबकि आयात 21.7 फीसदी बढ़कर 39.5 अरब डॉलर हो गया। इस तरह अक्टूबर में व्यापार घाटा 19.6 अरब डॉलर रहा है। यह पिछले चार सालों के दौरान किसी भी महीने में हुआ सबसे ज्यादा व्यापार घाटा है।

वैसे, अप्रैल से अक्तूबर तक के सात महीनों की बात करें तो इस दौरान देश का निर्यात साल भर पहले की समान अवधि की बनिस्बत 46 फीसदी ज्यादा, 179.8 अरब डॉलर है। इस दौरान आयात 273.5 अरब डॉलर डॉलर का रहा जो 31 फीसदी ज्यादा है। इस तरह चालू वित्त वर्ष 2011-12 के पहले सात महीनों में देश का व्यापार घाटा 93.7 अरब डॉलर रहा है।

इन आंकडों का ब्योरा देते हुए वाणिज्य सचिव खुल्लर ने सतर्क किया कि अगले छह महानों में स्थिति बहुत सुखद नहीं रहनेवाली। उनका कहना था कि खासतौर पर व्यापार घाटा काफी चिंता का विषय है। अगर यह इसी तरह बढ़ता रहा तो 2011-12 के लिए निर्धारित 150 अरब डॉलर की सीमा को अंततः तोड़ डालेगा।

खुल्लर का कहना था कि उन सेक्टरों के निर्यात को विशेष चोट पहुंची है जिनकी ज्यादा निर्भरता यूरोपीय बाजार पर है। इलेक्ट्रॉनिक्स सामग्रियों का बड़ा हिस्सा यूरोप को जाता है। इनका निर्यात अक्टूबर में 18 फीसदी घट गया है। वाणिज्य सचिव ने कहा कि साफ है कि किन बाजारों के चलते हमारे निर्यात के बढ़ने में धीमापन आया है।

अप्रैल से अक्तूबर के दौरान इंजीनियरिंग निर्यात 89.6 फीसदी बढ़कर 51.4 अरब डॉलर और पेट्रोलियम व तेल उत्पादों का निर्यात 51 फीसदी बढ़कर 31.9 अरब डॉलर हो गया। दूसरी तरफ इन्हीं सात महीनों में पेट्रोलियम पदार्थों का आयात 41 फीसदी बढ़कर 81.9 अरब डॉलर और सोना-चांदी का आयात 64 फीसदी बढ़कर 38.3 अरब डॉलर हो गया।

बीएसई डेरिवेटिव कारोबार हजार करोड़ के पार

Posted: 08 Nov 2011 05:04 AM PST


बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) में डेरिवेटिव ट्रेडिंग धीरे-धीरे जोर पकड़ती जा रही है। दो महीने पहले तक महज लाखों में रहनेवाला कारोबार अब 1000 करोड़ रुपए का आंकड़ा पार कर गया है। बीएसई से मिली आधिकारिक सूचना के अनुसार मंगलवार, 8 नवंबर को एक्सचेंज में हुआ डेरिवेटिव कारोबार 1054.45 करोड़ रुपए रहा है। यह वोल्यूम 107 ब्रोकरों के जरिए हुए 39,055 सौदों से हासिल हुआ है।

डेरिवेटिव सेगमेंट में आई जान एक्सचेंज द्वारा 28 सितंबर से शुरू की गई स्कीम, लिक्विडिटी एनहैंसमेंट इनसेंटिंव प्रोग्राम (एलईआईपी) का नतीजा है। 28 सितंबर को बीएसई में हुआ डेरिवेटिव कारोबार 330.01 करोड़ रुपए का था। 24 अक्टूबर को यह 546.29 करोड़ रुपए पर पहुंचा। इसके बाद चालू नवंबर माह में लगातार हर दिन बढ़ रहा है। 1 नवंबर को बीएसई में हुआ डेरिवेटिव वोल्यूम 567.32 करोड़ रुपए था। यह 2 नवंबर को 687.96 करोड़, 3 नवंबर को 759.64 करोड़, 4 नवंबर को 901.79 करोड़ और आज, 8 नवंबर को 1054.44 करोड़ रुपए पर पहुंच गया।

मंगलवार को इंडेक्स फ्यूचर्स में हुआ कारोबार 936.14 करोड़ रुपए का रहा, वहीं इंडेक्स ऑप्शंस में हुआ कारोबार 36.56 करोड़ रुपए का था। साथ ही सेंसेक्स में शामिल 30 स्टॉक्स के फ्यूचर्स में 72.72 करोड़ रुपए और ऑप्शंस में 9.03 करोड़ रुपए का वोल्यूम हुआ। गौर करने की बात यह है कि बीएसई ने स्टॉक फ्यूचर्स में फिजिकल सेटलमेंट की व्यवस्था कर रखी है, जबकि एनएसई में केवल कैश सेटलमेंट है। इसलिए माना जा रहा है कि भविष्य में बीएसई के स्टॉक फ्यूचर्स की तरफ परंपरागत एचएनआई (हाई नेटवर्थ इंडीविजुअल) निवेशक खिंच सकते हैं।

एक्सचेंज का मानना है कि एलईआईपी के रूप में शुरू की गई मार्केट मेकिंग स्कीम से रिटेल निवेशकों की भागीदारी बढ़ेगी। इस स्कीम को सफल बनाने के ले कुल 107 करोड़ रुपए रखे गए हैं जिसे स्कीम के चालू रहने के सात महीनों में दो चरणों में खर्च किया जाना है। हालांकि एनएसई में आमतौर पर हर दिन डेरिवेटिव सेगमेंट या एफ एंड ओ में होनेवाले एक लाख करोड़ रुपए के वोल्यूम के सामने बीएसई का हजार करोड़ का आंकड़ा कहीं नहीं टिकता, लेकिन बढ़ने की रफ्तार को देखते हुए किसी दिन यह फासला भी मिटाया जा सकता है। एनएसई में मंगलवार को एफ एंड ओ में कुल 82,073.20 करोड़ रुपए का कारोबार हुआ।

आने को है रिलायंस में खास खबर!

Posted: 08 Nov 2011 03:11 AM PST


यह हफ्ता छुट्टियों के चलते काफी छोटा है। शेयर बाजार में कुल तीन दिन ही ट्रेडिंग होनी है। बुधवार व शुक्रवार। बस दो दिन और। फिर अगले हफ्ते के एकदम शुरू में ही कंपनियों के तिमाही नतीजों के आने का सिलसिला थम हो जाएगा। लेकिन दुनिया के मंच पर घूम रही सारी बुरी खबरों के बीच एक ऐसी अच्छी खबर है जो हर तरफ शॉर्ट सौदों से भरे शेयर बाजार को चौंका सकती है और भारत इसका अपवाद नहीं है।

जैसा कि हम आपको पहले ही बता चुके हैं कि फिरंगी ब्रोकर हाउस भारतीय व्यवस्था की खामियों को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं और गरीब भारतीय निवेशकों, ट्रेडरों व प्रवर्तकों को छला जा रहा है। ये सभी तबके नुकसान के दलदल में धंस रहे हैं। वैसे, इसमें थोड़ा दोष हम भारतीय निवेशकों व ट्रेडरों का है जो प्यार से लेकर शेयरों तक में गोरी चमड़ी के मोह में पड़ जाते हैं और इसकी भारी कीमत चुकाते हैं।

टाटा स्टील को एक एफआईआई ब्रोकिंग हाउस ने अपग्रेड कर दिया है और इसके 685 रुपए तक पहुंचने का लक्ष्य रखा है। खैर, मेरे व आपके लिए हमारी टीम पर्याप्त चौकसी बरतती है। उसने टाटा स्टील को पहले 600 रुपए के ऊपर और फिर 400 रुपए पर उठाया था और हम सभी के लिए निवेश का आदर्श मौका पेश किया था। हम ऐसा इसलिए कर पाते हैं क्योंकि हम पैटर्न को समझते हैं। आप भी इसे समझकर बाजार में जीत सकते हैं। अन्यथा, ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो भीड़ के साथ बह जाते हैं।

इस बीच बाजार जमने-जमाने की कोशिश में लगा है। मुझे लग रहा था कि निफ्टी में 5408 का स्तर आज ही हासिल हो जाएगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। निफ्टी ऊपर में 5304.25 तक जाने के बाद कमोबेश पिछले स्तर के बराबर 5283.50 पर बंद हुआ है। जो भी हो, मै तो बेसब्री से 5408 के इंतजार में हूं। ऐसा होना अपरिहार्य है और, निफ्टी एक बार 200 डीएमए (200 दिनों के मूविंग औसत) के इस स्तर को पार कर गया तो सारा खेल ही बदल जाएगा।

जिस तरह उत्तर प्रदेश सरकार ने गन्ने का एसएपी (स्टेट एडवाइस्ड प्राइस) 40 रुपए बढ़ाकर 250 रुपए प्रति क्विंटल करने की खुशखबरी सुनाई है, उसी तरह रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) में भी हमें एक खास बड़ी खबर का इंतज़ार है। इससे आरआईएल का स्टॉक फिर चमाचम हो सकता है। मैं यह खबर आपके साथ अभी बांट नहीं सकता क्योंकि स्रोत बहुत पक्का नहीं है। हम अभी इसकी पुष्टि में लगे हैं। लेकिन इतना तय है कि इसके उजागर होते ही आरआईएल का पूरा सीन बदल सकता है और यह 1300 रुपए से ऊपर की मंजिल तक जा सकता है। जैसी ही इस खबर की पुष्टि होती है, मैं आप तक जरूर पहुंचा दूंगा। हमने इस समय आरआईएल में पहले 956 और फिर 1000 रुपए के लक्ष्य के साथ खरीदने की सलाह दे रखी है।

टेरा सॉफ्टवेयर आज 6.15 फीसदी बढ़कर 94 रुपए पर पहुंच गया। इसे हमने 50 रुपए पर पकड़ा था। यह आनेवाले महीनों में 200 रुपए तक जा सकता है। फिलाटेक्स में हमने 38 रुपए से शुरुआत की। यह भी आज 5.57 फीसदी बढ़कर 48.35 रुपए पर बंद हुआ है। अगले कुछ महीनों में यह पहले 70 और फिर 130 रुपए के पार जा सकता है।

भरोसा एक न एक दिन रंग जरूर आता है। किसी स्टॉक की सिफारिश करनेवाले शख्स में आपका कितना भरोसा था, इससे तय होता है कि आपको अंततः कितना रिटर्न मिलेगा। कभी-कभी आप बिना भरोसे के कोई स्टॉक खरीद लेते हैं और भरोसे के संकट के चलते उसे घाटे पर भी निकालने को मजबूर हो जाते हैं। अंत में एक बात और। बड़े दुख से कहना पड़ता है कि हम भारतीय हम भी रिसर्च के बजाय सुनी-सुनाई बातों व अफवाहों पर ही ज्यादा यकीन करते हैं। हम रिसर्च व ज्ञान का मोल समझते ही नहीं। मन की इस जड़ता और आदत की जकड़न को तोड़े बगैर हम शेयर बाजार से कमाई नहीं कर सकते।

आपको वो काम जरूर करने चाहिए जिनको आप सोचते हैं कि कभी कर ही नहीं सकते।

(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है। लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं पड़ना चाहता। इसलिए अनाम है। वह अंदर की बातें आपके सामने रखता है। लेकिन उसमें बड़बोलापन हो सकता है। आपके निवेश फैसलों के लिए अर्थकाम किसी भी हाल में जिम्मेदार नहीं होगा। यह मूलत: सीएनआई रिसर्च का कॉलम है, जिसे हम यहां आपकी शिक्षा के लिए पेश कर रहे हैं)

खाद्य मुद्रास्फीति से राह निकाली कंपनियों ने

Posted: 08 Nov 2011 12:21 AM PST


खाद्य मुद्रास्फीति के ऊंचे स्तर को धंधे के नए अवसर में तब्दील किया जा सकता है। यह कहना है दुनिया की जानीमानी सलाहकार फर्म केपीएमजी की ताजा रिपोर्ट का। राजधानी दिल्ली में मंगलवार को आयोजित नौवें ज्ञान शताब्दी सम्मेलन (नॉलेज मिलेमियम समिट) में पेश इस रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे कुछ कंपनियों ने खाद्य वस्तुओं को प्रभावित करनेवाली मांग-आपूर्ति की चुनौती को नवोन्मेष के जरिए बिजनेस का मौका बना लिया है।

इनके बिजनेस म़ॉडल से समस्या को कुछ हद तक सुलझाने में मदद भी मिली है। रिपोर्ट के मुताबिक, "व्यापक बाजार के संदर्भ में ऐसी केस स्टडी से निकले निष्कर्षों को कारगर व कुशल खाद्य श्रृंखला बनाने में इस्तेमाल किया जा सकता है।"

रिपोर्ट में कुछ बिजनेस मॉडलों का जिक्र भी किया गया है। जैसे, कोयम्बटूर की कंपनी सुगुना पोल्ट्री फार्म्स ने पोल्ट्री सेक्टर में फंडिंग की समस्या को कैसे दस राज्यों में 15,000 ग्रामीण उद्यमियों के जरिए सुलझा दिया। इसी तरह बैंगलोर की स्नोमैन फ्रोजेन फूड्स ने कोल्ड स्टोरेज की समस्या को नई टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से सुलझाया है। बता दें कि इस समय देश में स्टोरेज की सही सुविधाओं के अभाव में हर साल औसतन 35,000 करोड़ रुपए की फल-सब्जियां बरबाद हो जाती हैं।

केपीएमजी ने अपनी रिपोर्ट में इस बात का भी उल्लेख किया है कि कैसे देश में भूमि की कम उत्पादकता व उपलब्धता की समस्या से परेशान 19 भारतीय कृषि कंपनियों ने विदेश में जाकर कृषि भूमि खरीदी है। वहीं जलगांव की कंपनी जैन इरिगेशन पानी व सिंचाई सुविधाओं के अभाव को देखते हुए छोटे पैमाने की सिंचाई प्रणाली को बढ़ावा दे रही है। गुजरात की कंपनी एन-मार्ट ने बिखरी-बिखरी सप्लाई चेन को जोड़ने का काम किया है।

रिपोर्ट के मुताबिक भारत में कृषि बिजनेस में 45,000 करोड़ डॉलर के धंधे की संभावना है। इस सेक्टर को कृषि क्षेत्र और उपभोक्ताओं के बीच की मजबूत कड़ी के रूप में विकसित किया जा सकता है। केपीएमजी ने इस हकीकत को रेखांकित किया है कि कैसे कृषि क्षेत्र में निवेश घट रहा है, उत्पादकता कम है, इंफ्रास्ट्रक्चर का अभाव है और टेक्नोलॉजी का उचित इस्तेमाल नहीं हो रहा है। ये मुख्य कारण हैं जो इस समय खाद्य मुद्रास्फीति 12.21 फीसदी पर पहुंच गई है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि 2010-11 में भारत में अच्छे मानसून व ज्यादा कृषि उत्पादन के बावजूद खाद्य मुद्रास्फीति काफी ऊंचे स्तर पर है। खाद्य वस्तुओं की महंगाई मांग व आपूर्ति के तमाम कारकों का या तो प्रत्यक्ष या परोक्ष परिणाम रही है।

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