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Monday, November 14, 2011

Stock_for_YOU Fwd: ।।अर्थकाम।।




इंजीनियर्स इंडिया: तरकारी सरकारी

Posted: 14 Nov 2011 06:39 PM PST


इंजीनियर्स इंडिया। सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी जिसमें भारत सरकार की हिस्सेदारी 80.40 फीसदी है। पिछला एफपीओ (फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर) सवा साल भर पहले जुलाई 2010 में आया था। अगला एफपीओ भी देर-सबेर आएगा क्योंकि सरकार की हिस्सेदारी को घटाकर 75 फीसदी तक लाना जरूरी है। लेकिन अच्छी कंपनी के शेयर सस्ते में पाने की तमन्ना में उस्ताद लोग तब तक सरकारी कंपनियों के स्टॉक को दबाकर रखते हैं जब तक उनमें पब्लिक इश्यू की गुंजाइश बची रहती है।

यही वजह है कि जुलाई 2010 में एफपीओ में 290 रुपए पर जारी किए गए कंपनी के शेयर अभी 240 रुपए पर डोल रहे हैं। नए शेयरों की लिस्टिंग के बाद इसे 12 नवंबर 2010 को उठाकर 353.95 रुपए तक ले जाया गया। तब भाई लोग चार महीने में 20-22 फीसदी का मुनाफा पीटकर निकल लिए होंगे। तब से मामला ठंडा है। अभी पिछले महीने 25 अक्टूबर 2011 को इसने 231.05 रुपए पर 52 हफ्तों की तलहटी पकड़ ली। वह भी तब, जब उसी दिन कंपनी ने सितंबर 2011 की तिमाही के नतीजे घोषित किए थे। इनके मुताबिक चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में कंपनी की बिक्री 39.39 फीसदी बढ़कर 827.42 करोड़ रुपए और शुद्ध लाभ 22.26 फीसदी बढ़कर 146.64 करोड़ रुपए हो गया है।

न तो इन नतीजों और न ही कंपनी के साथ जुड़े किसी और विकासक्रम में कोई गड़बड़ी थी जो इसके शेयर को ठोंककर बैठा दिया जाता। लेकिन जब देश में सर्वशक्तिमान सरकार की कंपनी के साथ बेधड़क ऐसा हो रहा है तो यही मानना पड़ेगा कि हमारे बाजार पर सच्चे निवेशकों का नहीं, ऑपरेटरों का ही बोलबाला है। पर, भारतीय अर्थव्यवस्था के बढ़ने के साथ लंबे समय तक ऐसा नहीं चलेगा। इसलिए लंबे समय के निवेशकों के लिए यह अच्छा मौका भी है। इंजीनियर्स इंडिया का शेयर फिलहाल अपने न्यूनतम स्तर से ज्यादा दूर नहीं गया है। उसका पांच रुपए अंकित मूल्य का शेयर कल बीएसई (कोड – 532178) में 239.60 रुपए और एनएसई (कोड – ENGINERSIN) में 240.25 रुपए पर बंद हुआ है।

यह केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्रालय के तहत काम करनेवाली 1965 में बनी सरकारी कंपनी है। नाम के अनुरूप इंजीनियरिंग व कंस्ट्रक्शन का काम करती है। पेट्रोलियम रिफाइनिंग, पेट्रोरसासन, पाइपलाइन, खनन व इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे विविध उद्योगों को अपनी सेवाएं देती हैं। फंडामेंटल स्तर पर बड़ी पुख्ता कंपनी है। ब्रोकरेज फर्म एडेलवाइस के डाटाबैंक के अनुसार पिछले तीन सालों में इंजीनियर्स इंडिया की बिक्री 55.77 फीसदी और शुद्ध लाभ 38.59 फीसदी की सालाना चक्रवृद्धि दर (सीएजीआर) से बढ़ा है। नियोजित पूंजी पर उसका रिटर्न 60.70 फीसदी और इक्विटी पर रिटर्न 40.19 फीसदी है। यह पूरी तरह ऋण-मुक्त कंपनी है। सितंबर 2011 की तिमाही में परिचालन लाभ मार्जिन (ओपीएम) 26.19 फीसदी और शुद्ध लाभ मार्जिन (ओपीएम) 17.72 फीसदी है।

कंपनी का ठीक पिछले बारह महीनों (टीटीएम) का ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) 17.29 रुपए है। इस तरह उसका शेयर इस वक्त मात्र 13.86 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। जुलाई 2009 के 13.28 के बाद पहली बार कंपनी का शेयर इतने कम पी/ई पर आया है। बीच में जनवरी 2010 में यह ऊपर में 41.53 तक के पी/ई पर ट्रेड हो चुका है। इस लिहाज से आज की तारीख में भी इसमें 500 रुपए से ऊपर जाने का दमखम है। लेकिन मौजूदा बाजार शक्तियां चाहेंगी, तभी ऐसा होगा क्योंकि हमारे-आप जैसे आम निवेशक या तो बाजार में हैं नहीं या हैं भी तो बड़े खिलाड़ियों के आगे कहीं नहीं टिकते।

पब्लिक सेक्टर की इस कंपनी की कुल 168.47 करोड़ रुपए की इक्विटी में पब्लिक का हिस्सा मात्र 19.60 फीसदी है। इसमें से भी सितंबर 2011 तक की स्थिति के अनुसार एफआईआई के पास 5.23 फीसदी और डीआईआई के पास 7.94 फीसदी शेयर हैं। पिछली तीन तिमाहियों में एफआईआई ने कंपनी में अपना निवेश घटाया है, जबकि डीआईआई ने बढ़ाया है। मार्च 2011 की तिमाही तक कंपनी में एफआईआई का निवेश 6.58 फीसदी और डीआईआई का निवेश 7.19 फीसदी था। कंपनी के कुल शेयरधारकों की संख्या 1,24,759 है। इसमें से 1,21,551 (97.42 फीसदी) छोटे निवेशक हैं जिनके पास कंपनी के केवल 4.38 फीसदी शेयर हैं। इंजीयरिंग सेक्टर में निजी क्षेत्र की कंपनी बीजीआर एनर्जी सिस्टम्स (बीएसई – 532930, एनएसई – BGRENERGY) के शेयर भी इस समय सस्ते में उपलब्ध हैं। चाहें तो एक नजर डाल सकते हैं।

मुड़ना आदतों का

Posted: 14 Nov 2011 04:45 PM PST


आदतों को मोड़ना बड़ा कठिन है, लेकिन बेहद आसान भी। ऊपर से ठोंक-ठोंककर मनाएंगे, आदत जाने का नाम नहीं लेगी। लेकिन अंदर से ज़रा-सा इशारा करेंगे तो टनों का पूरा इंजिन मुड़ता चला जाएगा।

मूडीज़ का मूड बदलने में जुटा वित्त मंत्रालय ताकि बढ़ाई जा सके रेटिंग

Posted: 14 Nov 2011 08:07 AM PST


सरकार अंतरराष्ट्रीय एजेंसी मूडीज़ को पटाने में जुट गई है कि वह भारत की संप्रभु रेटिंग बढ़ा दे या न भी बढ़ाए तो उसे कम से कम घटाए नहीं। इस सिलसिले में राजधानी दिल्ली में वित्त मंत्रालय के कई बड़े अधिकारी सोमवार को मूडीज़ इनवेस्टर सर्विस की टीम से मिले। मुलाकात व प्रजेंटेशन का क्रम मंगलवार को भी जारी रहेगा।

हालांकि मूडीज़ का कहना कि भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के अधिकारियों से मिलना एक रूटीन का हिस्सा है। लेकिन सूत्रों के मुताबिक सरकार इसे विशेष अहमियत दे रही है क्योंकि जिस तरह मूडीज ने हाल में भारतीय बैंकिंग उद्योग को डाउनग्रेड किया है, उससे सरकार चिंतित हो गई है। बता दें कि इस समय मूडीज ने भारत को बीएए3 (Baa3) की रेटिंग दे रखी है। यह निवेश ग्रेड की न्यूनतम रेटिंग है।

सोमवार को वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलात विभाग के अधिकारी मूडीज के प्रतिनिधियों से मिले। सूत्रों के मुताबिक उनका कहना था कि बीएए3 की रेटिंग वाले देशों की तुलना में भारत ने कई मानकों पर बेहतर कामकाज किया है। इसलिए इसकी रेटिंग अब बढ़ा दी जानी चाहिए। वहीं, मूडीज़ ने चिता जताई है कि भारत इस साल राजकोषीय लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाएगा और जीडीपी के 4.6 फीसदी के बजाय राजकोषीय घाटा कम से कम 5 फीसदी रह सकता है।

मंगलवार को वित्तीय सेवाओं के विभाग के अधिकारी भी मूडीज के लोगों से मिलेंगे और उन्हें यकीन दिलाने की कोशिश करेंगे कि भारत की संप्रभु रेटिंग क्यों बढ़ा दी जानी चाहिए। सोमवार के प्रजेंटेशन में आर्थिक मामलात विभाग के अधिकारियों ने बताया है कि भारत के बाह्य ऋण व जीडीपी का अनुपात कम है, विदेशी मुद्रा भंडार ज्यादा है, बाहरी ऋण का ऋण-सेवा अनुपात कम है, घरेलू पूंजी बाजार मजबूत है और देश का घरेलू ऋण विविध स्रोतों से लिया गया है, आदि-इत्यादि।

अगर मूडीज़ भारत की संप्रभु रेटिंग बढ़ा देती है तो देश को कम ब्याज पर कर्ज मिल सकता है। देश पर जून 2011 के अंत तक 317 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज था। मार्च 2011 के अंत में इसकी मात्रा 306 अरब डॉलर थी। मूडीज़ को सबसे बड़ा एतराज यही है कि भारत इस साल राजकोषीय घाटे को जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) के 4.6 फीसदी तक सीमित नहीं रख पाएगा। इसकी एक खास वजह है कि उसका 40,000 करोड़ रुपए का विनिवेश लक्ष्य किसी भी सूरत में पूरा होने के आसार नहीं हैं।

सरकार मूडीज़ को खुश करने के लिए कह रही है कि वह आर्थिक सुधारों को लेकर प्रतिबद्ध है। पेट्रोल के मूल्यों से नियंत्रण हटाया जा चुका है। मल्टी ब्रांड रिटेल में 51 फीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की मंजूरी कभी भी दे दी जाएगी। विदेशी उधार के नियम ढीले किए जा रहे हैं और भूमि अधिग्रहण विधेयक समेत कई लंबित विधेयक संसद में पेश किए जाने की कतार में हैं, वगैरह-वगैरह। देखिए, इन बातों से मूडीज़ का मूड बदलता है या नहीं। वैसे, मूडीज़ के एक वरिष्ठ एनालिस्ट का कहना है कि वित्त मंत्रालय के अधिकारियों के साथ मिलना हर साल का रूटीन काम है। एजेंसी के लोग हर साल हर देश के सरकारी प्रतिनिधियों से मिलते हैं। इसलिए इसमें बहुत ज्यादा अर्थ नहीं तलाशा जाना चाहिए। (रॉयटर्स)

घटने के बजाय अक्टूबर में और बढ़ी मुद्रास्फीति

Posted: 14 Nov 2011 07:12 AM PST


अक्टूबर माह में सकल मुद्रास्फीति की दर उम्मीद से बदतर ही रही है। माना जा रहा था कि शायद इसमें कुछ कमी आएगी। लेकिन सोमवार को केंद्रीय वाणिज्य व उद्योग मंत्रालय की तरफ से जारी आंकड़ों के अनुसार थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति की दर 9.73 फीसदी रही है। यह सितंबर में 9.72 फीसदी थी।

नोट करने की बात है कि लगातार पिछले ग्यारह महीनों से मुद्रास्फीति की दर नौ फीसदी से ज्यादा चल रही है। वह भी तब, जब रिजर्व बैंक मार्च 2010 के बाद के 20 महीनों के 13 बार ब्याज दरें बढ़ा चुका है। वैसे, थोड़े से सुकून की बात यह है कि अक्टूबर 2011 में मैन्यूफैक्चर्ड उत्पादों की मुद्रास्फीति दर 7.66 फीसदी रही है, जबकि एक महीने पहले सितंबर 2011 में यह 7.69 फीसदी थी। थोक मूल्य सूचकांक में मैन्यूफैक्चर्ड उत्पादों का योगदान 64.97 फीसदी है। शायद इसकी महंगाई में कमी को शुभ संकेत मानकर रिजर्व बैंक अब ब्याज दर बढ़ाने का सिलसिला रोक दे।

उधर इन आंकड़ों के जारी होने के बाद वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने भरोसा जताया है कि बेहतर मानसून से कृषि जिंसों के दाम घटेंगे। उन्होंने कहा कि लगभग 10 फीसदी पर पहुंच चुकी मुद्रास्फीति की मुख्य वजह खाद्य वस्तुओं के ऊंचे दाम हैं। आगे बेहतर मानसून का पूरा असर दिखाई देगा। साथ ही आपूर्ति में सुधार के लिए उठाए गए कदमों के भी नतीजे दिखाई देंगे।

वित्त मंत्री ने कहा अप्रैल से अक्टूबर के सात माह के दौरान ऊंची मुद्रास्फीति की मुख्य वजह खाद्य वस्तुओं की महंगाई है। इनकी कीमतों में अच्छी खासी बढ़ोतरी हुई है। मुखर्जी ने कहा कि प्राथमिक वस्तुओं की कीमतों में गिरावट का फायदा खाद्य वस्तुओं की ऊंची कीमतों की वजह से नहीं दिखाई दे रहा है। उन्हांने कहा कि सरकार को खाद्य महंगाई से निपटने के लिए आपूर्ति संबंधी समस्या को दूर करना होगा। खाद्य मुद्रास्फीति की दर 29 अक्टूबर को समाप्त सप्ताह में 11.81 फीसदी दर्ज की गई है।

जापान उबरा भूकंप के असर से, 6% रही विकास दर

Posted: 14 Nov 2011 06:49 AM PST


जापान अब मार्च में आए भूकंप के असर से उबर गया लगता है। अभी सितंबर में बीती इस साल की तीसरी तिमाही में जापान की अर्थव्यवस्था में सुधार हुआ है। जापान सरकार के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक जुलाई-सितंबर 2011 में जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) की विकास दर 6 फीसदी रही है। हालांकि इसकी उम्मीद अर्थशास्त्रियों को पहले से थे। समाचार एजेंसी ब्लूमबर्ग की तरफ से किए गए सर्वेक्षण में 26 अर्थशास्त्रियों ने सितंबर तिमाही में जापान के जीडीपी में साल भर पहले की तुलना में 5.9 फीसदी बढ़त का अनुमान लगाया था।

जुलाई से सितंबर की तिमाही में जीडीपी की विकास दर ठीक पहले की जून तिमाही की अपेक्षा 1.5 फ़ीसदी बढ़ गई है। पिछली तीन तिमाहियों में संकुचित विकास दर के बाद पहली बार इसमें सकारात्मक सुधार हुआ है।

हालांकि विश्लेषकों का कहना है कि जापान की मुद्रा येन और वैश्विक आर्थिक समस्याओं का असर जापान के आर्थिक सुधार की गति पर पड़ेगा। मार्च के भूकंप और सुनामी के बाद जापान की अर्थव्यवस्था आर्थिक मंदी का शिकार हो गई थी। देश के उत्तर-पूर्व में आए भूकंप ने फ़ैक्टरियों को भी तबाह किया और आपूर्ति को प्रभावित कर दिया।

हालांकि हाल के आंकड़ों से पता चलता है कि निर्यात में सुधार हो रहा है जिससे आर्थिक विकास को गति मिल रही है। कैबिनेट कार्यालय के आंकड़ों के मुताबिक़ देश के कुल निर्यात ने तीसरी तिमाही के विकास दर में तिहाई से थोड़ा ज़्यादा का योगदान किया था।

बराक ओबामा ने खुलकर चीन को आड़े हाथों लिया

Posted: 14 Nov 2011 06:30 AM PST


अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कड़े शब्दों में कहा है कि वे चीन की व्यावसायिक और मौद्रिक नीतियों से तंग आ गए हैं। एशिया प्रशांत देशों की बैठक में ओबामा ने चीनी राष्ट्रपति हू जिन ताओ से मुलाकात के बाद यह कहा।

ओबामा ने अमेरिका के हवाई प्रांत में आयोजित एशिया-प्रशांत देशों की शिखर वार्ता के अंतिम दिन, रविवार को संवाददाता सम्मेलन में कहा, बहुत हुआ। हम इसी मुद्दे पर कायम रहेंगे कि चीन भी दूसरों की तरह ही नियमों पर चले। हम नहीं चाहते कि वो अमेरिका का फायदा उठाए।

ओबामा ने चीन के राष्ट्रपति हू जिन ताओ से मुलाकात के बाद कड़े शब्दों में कहा कि चीन को अंतरराष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली से खेलना बंद कर देना चाहिए और अमेरिका सहित दूसरे देशों के लिए व्यापार का एक स्तर बनाना चाहिए।

चीन की तरफ से अभी तक इस मुद्दे पर कोई टिप्पणी नहीं आई है। चीन अपनी मुद्रा युआन के मुक्त व्यापार के लिए और व्यापार में अपने भारी फायदे को कम करने के प्रस्ताव को हमेशा से ठुकराता रहा है। ओबामा का यह बयान अमेरिका के व्यापार को ध्यान में रख कर आया है।  अमेरिका में अगले साल नवंबर में राष्ट्रपति चुनाव हैं।

ओबामा ने जोर दिया कि चीन को अपनी मुद्रा को बढ़ने देना चाहिए। अमेरिका का कहना है कि चीन जान-बूझ कर युआन की कीमत को कम रखे हुए है जिसके कारण अमेरिकी कंपनियों और नौकरियों को नुकसान हो रहा है। बराक ओबामा ने कहा कि चीन खुद को विकासशील देश के तौर पर प्रस्तुत करता है। लेकिन वह 'अब बड़ा हो चुका' है और उसे बड़ों की तरह से पेश आना चाहिए।

गैस के दो बादल जो बने बिग बैंग के तुरत बाद

Posted: 14 Nov 2011 06:04 AM PST


खगोल वैज्ञानिकों ने गैस के ऐसे दो बादलों का पता लगाया है, जिसके बारे में उनका मानना है कि वे ब्रह्मांड का निर्माण करनेवाले महाविस्फोट (बिग बैंग) के कुछ ही मिनट बाद बन गए थे।

खगोल वैज्ञानिकों ने बताया कि गैस के इन बादलों की सबसे पहले हुई इस खोज में व्यापक रूप से स्वीकृत उस सिद्धांत का और अधिक समर्थन किया गया है, जिसके तहत ब्रहमांड के निर्माण की प्रक्रिया बताई गई थी। आरंभिक गैसीय बादल में सिर्फ हल्के तत्व हाइड्रोजन और हीलियम मौजूद थे, जिसका निर्माण बिग बैंग से हुआ था।

स्पेस डॉट कॉम पर कुछ दिन पहले प्रकाशित खबर में बताया गया है कि शोधकर्ताओं के मुताबिक बिग बैंग के लाखों साल बाद इन गैसीय बादलों का हिस्सा संघनित होकर पहला तारा बना होगा, जिसने समूचे ब्रह्मांड में भारी तारों का निर्माण और प्रसार किया होगा।

सांताक्रुज स्थित कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय (यूसीएससी) में स्नातक की छात्रा व अध्ययन दल प्रमुख मिशेल फुमागली के मुताबिक, ये बातें शुरूआती ब्रह्मांड के बारे में सैद्धांतिक अनुमानों के समान है।

1964 लाएगा घूसखोर अफसरों की शामत!

Posted: 14 Nov 2011 04:36 AM PST


केंद्रीय सर्तकता आयोग (सीवीसी) का नया टोल-फ्री हेल्पलाइन नंबर 1964 एक महीने में चालू हो जाएगा। इस पर सातों दिन, चौबीसों घंटे घूसखोर अफसरों की शिकायत दर्ज कराई जा सकती है। यह कॉलसेंटर जैसा होगा। लेकिन दिल्ली सरकार या उसके विभागों के खिलाफ यह हेल्पलाइन मददगार नहीं होगी क्योंकि वे सीवीसी के दायरे में नहीं आते। 1964 में गठित सीवीसी के अभी दो टोल-फ्री नंबर हैं 1800-11-1080 और 011-2465100। लेकिन इन पर सोम से शुक्र सुबह 9 बजे से लेकर शाम 7 बजे तक ही शिकायत की जा सकती है।

निफ्टी कहीं 5010 तक न चला जाए!

Posted: 14 Nov 2011 04:06 AM PST


ऑपरेटरों द्वारा संचालित स्टॉक्स की धुनाई का एक और दौर बाजार में साफ-साफ देखा जा सकता है। केएसके एनर्जी वेंचर्स और गति लिमिटेड इसी का शिकार बन गए लगते हैं। केएसके को 8.22 फीसदी तोड़कर 64.20 रुपए की नई तलहटी पर पहुंचा दिया गया, वहीं 20 फीसदी तोड़कर गति की भरपूर दुर्गति कर डाली गई। ऐसे में चुनिंदा स्टॉक्स तक सीमित रहना ही भला।

देखें कि डिश टीवी और वीआईपी इंडस्ट्रीज में क्या हो रहा है? हमने वीआईपी के 1040 रुपए रहने पर खुलकर कहा था कि यह 500 रुपए के भी काबिल नहीं है। इसका भाव अब गिरकर आनुपातिक रूप से 650 रुपए (दो रुपए अंकित मूल्य पर 130 रुपए) तक आ गया है। इस बीच दस रुपए अंकित मूल्य के शेयर को 1 नवंबर 2011 से दो रुपए अंकित मूल्य के पांच शेयरों में बांटा जा चुका है। कुछ एनालिस्टों ने खबर दी है कि इसके खिलाफ सेबी की कार्रवाई हो सकती है। साफ लगता है कि वीआईपी के प्रवर्तकों को 400 करोड़ रुपए के आसपास निकालने को मजबूर किया गया होगा। यह सच है कि वीआईपी के प्रवर्तकों ने फरवरी 2008 में कुछ सौदे किए थे जो 5 फीसदी की सीमा से ज्यादा (5.64 फीसदी) थे। इसकी सूचना उस वक्त स्टॉक एक्सचेंजों व सेबी को नहीं दी गई क्योंकि जिन कंपनियों (किड्डी प्लास्ट व केम्प एंड कंपनी) ने यह खरीद की थी, उसे गैर-प्रवर्तक बताया गया और अभी इस साल सितंबर से उन्हें प्रवर्तकों में शामिल दिखा दिया गया। यह साफ तौर पर नियमों का उल्लंघन और इस पर सेबी की कड़ी कार्रवाई होनी ही चाहिए।

अगर विजय माल्या जैसा शख्स किंगफिशर एयरलाइंस को नहीं संभाल पा रहा है तो वीआईपी 30 के पी/ई अनुपात पर कैसे मजबूत हो सकता है? यह सवाल आप जरूर उनसे पूछें जिन्होंने जबरन इस स्टॉक में खरीद की सलाह दी थी। 130 रुपए के भाव पर भी यह स्टॉक महंगा है और तब तक इसी तरह लस्टम-पस्टम रहेगा जब तक रुपया 50 रुपए के नीचे रहता है। यही सच डिश टीवी का है। इस स्टॉक की असली औकात 35 रुपए की है। कंपनी अब धन जुटाने की तैयारी में है तो इसका और गिरना तय है। मैंने पहले कहा था कि 72 रुपए से नीचे जाते ही इस स्टॉक में भारी गिरावट आएगी और अब ये फिसलन शुरू हो चुकी है। डिश टीवी आज 7.69 फीसदी गिरकर 72.15 रुपए से 66.60 रुपए पर आ गया।

जेट एवरवेज ने 700 करोड़ रुपए का घाटा (ज्यादातर विदेशी मुद्रा दरों के चलते) खाने की घोषणा की है। इसके बावजूद उसे लेनेवाले मिल जा रहे हैं क्योंकि यह स्टॉक इस तिमाही के खराब अनुमानित नतीजों के चलते पहले ही 500 रुपए से घटकर महज 225 रुपए पर आ चुका है। अब कंपनी का सबसे बुरा राहुकाल बीत चुका है। एक बार फिर छह महीने के भीतर आप जेट को 400 रुपए के ऊपर पहुंचा हुआ देख सकते हैं।

पिपावाव डिफेंस ने उम्मीद से बेहतर नतीजे घोषित किए हैं। एस्कोर्टस को महिंदा एंड महिंद्रा द्वारा जबरन हथियाने की कोशिश की जा सकती है। इसलिए यह मूल्यवान खरीद बना रहेगा। इनफोसिस, टाटा मोटर्स, हिंडाल्को व टाटा स्टील डाउनग्रेड के बावजूद मजबूत बने रहेंगे। ये छह स्टॉक्स मेरे हिसाब से निवेश के लिए काफी मुफीद हैं। लेकिन इनमें कम से कम छह महीने के नजरिए के साथ निवेश करना चाहिए।

कितनी मजेदार बात है कि जिन देशों का कोई भविष्य नहीं है, उन देशों की रेटिंग एजेंसियां ऐसे देशों व स्टॉक्स को डाउनग्रेड कर रही हैं जो चक्र के निचले दौर के अंत तक पहुंच चुके हैं। भरोसा बढ़ता जा रहा है कि इससे बुरा अब कुछ भी नहीं हो सकता। आईआईपी का 1.81 फीसदी पर पहुंच जाना और जीडीपी के 7.7 फीसदी के नीचे चले जाने की आशंका साफ दिखाती है कि रिजर्व बैंक अब ब्याज दरों में कमी लाएगा जिससे इक्विटी बाजार में समझदारी की वापसी हो सकती है। लेकिन इस बीच रिजर्व बैंक के मौद्रिक उपायों के चलते बहुत-सी लघु इकाइयां कर्ज लौटाने में डिफॉल्टर हो चुकी हैं।

निवेशकों का विश्वास अब भी चूर-चूर हुआ रखा है। इसलिए ज्यादातर निवेशक बाजार से दूर रहना ही बेहतर समझते हैं जबकि ट्रेडर केवल शॉर्ट सौदे ही कर रहे हैं। निफ्टी आज खुलने के कुछ देर बाद 5228.90 रुपए पर पहुंच गया। लेकिन फिर गिरने लगा तो गिरता ही गया। अंत में 0.40 फीसदी की गिरावट के साथ दिन के न्यूनतम स्तर के करीब 5148.35 पर बंद हुआ। मुझे डर है कि निफ्टी चालू नवंबर माह के खत्म होते-होते कहीं 5010 तक न चला जाए। हमें इसके लिए मानसिक रूप से तैयार रहना चाहिए।

विज्ञान हमारे ज्ञान की सीमाएं बांध सकता है। लेकिन कल्पना पर कभी कोई सीमा नहीं बांध सकता।

(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है। लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं पड़ना चाहता। इसलिए अनाम है। वह अंदर की बातें आपके सामने रखता है। लेकिन उसमें बड़बोलापन हो सकता है। आपके निवेश फैसलों के लिए अर्थकाम किसी भी हाल में जिम्मेदार नहीं होगा। यह मूलत: सीएनआई रिसर्च का कॉलम है, जिसे हम यहां आपकी शिक्षा के लिए पेश कर रहे हैं)


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